मेरे अहसास की जुबाँ है तुम्हार
मेरे अहसास की जुबाँ है तुम्हार
मेरे अहसास की जुबाँ है तुम्हारी चाहत
शीत साँसों में तुम्हारी यादों का धुआँ भरते जब
तन्हाई पिघलती है तब मेरी नरगिसी आँखों में
अश्कों के मोती उमड़ते हैं।
चूमती हूँ तुम्हारी तस्वीर की रौनक
असंख्य सवाल लबों पर लिए
कहाँ कोई जवाब तुम्हारी और से
मुसलसल मौन के मजमे
दौड़े चले आते है मेरी ओर।
मशरूफ तुम, मजबूर हम एक छोटा ही
सही क्या मेरा कोई ख़याल तुम्हारे
ख़्यालों की अंजुमन में उभरता नहीं
खत्म कर दो ना दूरियों के फ़लसफे
क्या गुफ़्तगु की कोई गुंजाइश नहीं।
दीदार की बेपनाह जुस्तजू का तूफ़ान
इन आँखों में ठहर गया है,
गुज़रो मेरी गली से ऐसा कोई इंतज़ाम कर दो ना,
तुम्हारे जिस्म की खुशबू बानगी
बन मुस्कुराती है मुझसे लिपटी।
खुद से ही भावविहीन संवादों से घिरी
स्वयं के अंतर्द्वंद्व को कैसे शांत करूँ,
कहो ना वक्त से बदले करवट
फासलों का कोहरा छंटे,
रोशन हो जिंद जो मिलन का दीप जले।
क्षितिज के उस पार गर सुनाई दे
मेरे दर्द का शोर तो चले आना,
लाना इस बार कुछ लम्हें मेरे हिस्से के साथ
जो सदियों से उधार है तुम पर।