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Basudeo Agarwal

Classics Abstract

4.1  

Basudeo Agarwal

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कलाधर छंद "योग साधना"

कलाधर छंद "योग साधना"

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311


(कलाधर छंद)

दिव्य ज्ञान योग का हिरण्यगर्भ से प्रदत्त,

ये सनातनी परंपरा जिसे निभाइए।

आर्ष-देन ये महान जो रखे शरीर स्वस्थ्य,

धार देह वीर्यवान और तुष्ट राखिए।

शुद्ध भावना व ओजवान पा विचार आप,

चित्त की मलीनता व दीनता हटाइए।

नित्य-नेम का बना विशिष्ट एक अंग योग।

सृष्टि की विभूतियाँ समस्त आप पाइए।।


मोह लोभ काम क्रोध वासना समस्त त्याग,

पाप भोग को मनोव्यथा बना निकालिए।

ज्ञान ध्यान दान को सजाय रोम रोम मध्य,

ध्यान ध्येय पे रखें तटस्थ हो बिराजिए।।

ईश-भक्ति चित्त राख दृष्टि भोंह मध्य साध, 

पूर्ण निष्ठ ओम जाप मौन धार कीजिए।

वृत्तियाँ समस्त छोड़ चित्त को अधीन राख,

योग नित्य धार रोग-त्रास को मिटाइए।

******

*कलाधर छंद* विधान


पाँच बार "राज" पे "गुरो" 'कलाधरं' सुछंद।

षोडशं व पक्ष पे विराम आप राखिए।।

ये घनाक्षरी समान छंद है प्रवाहमान।

राचिये इसे सभी पियूष-धार चाखिये।।

बासुदेव अग्रवाल नमन


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