तलाश
तलाश
बहुत बेबाक थे हम
हौंसले थे बुलंद
इरादे थे नेक
सोचा था बदल देंगे
हवाओं का रूख
यथार्थ के धरातल पर
जब रखे ठोस कदम
देख हवाओं का रूख
न जाने कब पस्त हुए हौंसले
डगमगा गए कदम
और फिर हवाओं के साथ
बहते-बहते न जाने कहां
उड़ गए मेरे इरादे, मेरे हौंसले
मुझे मालूम नहीं
क्या था मैं क्या थे मेरे इरादे
सब कुछ भूल गया
अब तो बस बह रहा हूं
हवाओं के सहारे
मंजिल की तलाश में
न जाने कहां ले जाएगी
मुझे ये हवाएँ
अब तो बस यूँ ही
बहे चले जा रहे हैं
हवाओ के सहारे।