स्वदेश (मेरा भारत वर्ष )
स्वदेश (मेरा भारत वर्ष )
1.) मेरे देश की धरती के सीने पे, छपी एक किताब है।
यह खुली हुई किताब, रखती हिसाब-बेहिसाब है।
2.) यूं तो खूबसूरती से लबरेज, इसका हर कोना है,
मस्तक पर सुशोभित "कश्मीर"
पैरों से ऊपर विराजमान "कन्याकुमारी" है,
देखने लायक हर कोने की छटा न्यारी-प्यारी ही है।
3.) हृदय में बसा इसके
असंख्य वीर सपूतों का बलिदान है,
देश की रक्षा को हर पल तत्पर
खड़ा देश का हर जवान है।
4.) आंख उठा कर देखे कोई बाहरी
या आतुर करने को प्रहार है,
धूल चटा कर, नेस्तनाबूद करने का
श्वांसों पर रहता इसके हर पल प्रतिकार है।
5.) मेरे देश की धरती का, उदर अत्यंत ही विशाल है,
भरा इसमें असंख्य दर्दों का अंबार है
भ्रष्टाचार का चहूं और बोलबाला है,
पल-पल लुटती जब देश की बेटियों की आबरू
फटती धरा की छाती ' चीत्कार करती'
और तैयार करती स्वंय को, ऐसे नृशंसो का
करने को संहार है।
6.) मेरे देश की धरती उगले सोना, उगले हीरे मोती
असंख्य संसाधनों-व्योपारों से भरा
आज भी इसमें अगाध भंडार है
मेरे देश की गोद अत्यंत विशाल है।
7.) मेरे देश की धरती का इतिहास नायाब है
मेरे देश की धरती का भूगोल भी कमाल है
मेरे देश की धरती का वर्तमान जूझ रहा है
और जूझने की शक्ति भी इसमें अपार है।
8.) क्या कहूं ? अपने देश की प्रशंसा में,
मेरे देश की माटी से सुगंधित
केवल मेरा देश व भारतवासी ही नहीं
अपितु सारा विश्व सारा जहान है।
9.) क्या अर्पण करूं तुम्हें ?
मेरे भारतवर्ष की धरा
तुझसे रोशन ही तो मेरी
सांसो का हर कोना
मुख पर चढ़ा राष्ट्रीय गान तो
हृदय की आवाज राष्ट्रीय गीत है।
वंदे मातरम वंदे मातरम
सुजलाम सुफलाम मलयज शीतलाम
सुखराम वरदान मातरम!
वंदे मातरम वंदे मातरम।