शाम
शाम
खामोश मंज़र खूबसूरत इस क़दर,
ढलते सूरज का पैगाम सुकून ये सुहानी शाम,
उतर जाना गहराई में ऐसे निकलो जब,
बिखरो किरणों के जैसे,परिंदे लौट रहे घर को
हर कोई मुंतज़िर है दर को,
कुछ देर ठहरना है सुस्ताना है
कल फ़िर ताज़ा होकर आना है
कायनात यूं हैरान करती है
ख़ामोशी भी कितनी बात करती है।