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पहले छिप कर देखा है

पहले छिप कर देखा है

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पहले छिप कर देखा है

तेरी अदाओं को, तेरी वफ़ाओं को

पहले छिप कर देखा है


हर रोज़ सुबह मंदिर ६ बजे पहुँच जाना

तेरी सूरत देखने का था बहाना

कभी झुकना कभी उठना कभी

आँखें बन्द कर के बुदबुदाना

निगाहों में क़ैद कर के हर नज़ारे को ,

घर में बैठ आँखें बन्द कर कई कई बार देखा है ।


पहले छिप कर देखा है

तेरी अदाओं को, तेरी वफ़ाओं को

पहले छिप कर देखा है


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