फक्र
फक्र
सदियों से झेल रहे हैं हम,
फुरसत से लगाये आग को
तप रहे हैं हम आज भी,
उठते इन आग के लपटों से ।
सभ्यता थी हमारी ऐसी की
सबको गले लगाना पड़ा
अपने क्या ओर पराये क्या ,
गैरों को भी अपनाना पड़ा ।
देश बट् गया , कई मुल्क बन गये
जंग छिड़ गया ,कत्लेआम हो गया
पर न जाने क्यों ?
विवाद आज भी जिंदा है?
कई टूकड़ो में बंटने पर भी
आज हम जिंदा है,
हमारा इतिहास जिंदा है।
हम सब कुछ भुला दिये नई सदी के लिए
पर न जाने क्यों ?
वो अंधेरे में बंदूके अपनी तानें बैठे हैं
ओर , दे पनाह आतंकवाद - नक्सलवाद को,
बना फिर कोई फिदाईन नया
भारत को मिटाने की आस लगाये बैठे हैं
कत्लेआम आज भी जारी है,
सरहदों पर वादियाँ आज भी घबराती है,
कि न जाने अब कौन सा बम फटने वाला है,
अब न जाने क्या चाह है उनकी,
न वो मरना चाहते हैं,
न वो मिटना चाहते हैं
फिर क्यों अब विवाद जिंदा है?
फख्र है हमें अपने मुल्क पर
इतना सब होने पर भी
हम आज जिंदा हैं , मुल्क हमारा जिंदा है,
क्योंकि हम आज जिंदा हैं।
