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Bhavna Thaker

Romance

4  

Bhavna Thaker

Romance

फ़ितूर

फ़ितूर

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फ़ितूर चढ़ा है आज फ़ुर्सत के पलों में 

क्यूँ ना ज़िंदगी को पुकार ले प्रीत का असबाब सँवार ले.!

चलो पुराने घर की खिड़की का आधा दरवाजा खोलकर प्रेम ओर उम्मीद का नग्मा गाते है 

चाहत की श्रृंगि बजाकर कोई विरह का तीर आरपार निकाल दे

ये समय बड़ा मुश्किल है उम्र को बचाना है.!

रुकी हुई ट्रेन के पहिये का रूदन सुन रहे हो उससे ताल मिलाता खबरों का जहाँ मौत की दामिनी से झिलमिलाता मन को आहत करता है, 

मैं तितली के पर के उपर चुंबन से प्रीत लिखती हूँ.! 

तुम हौले से अपनी खिड़की का दरवाजा खोलकर चुपके से थाम लेना.!

देखो हर तरफ़ से सन्नाटे चिल्ला रहे हैं

पर मुझे तान सुनाई देती है कृष्ण की मुरली से जैसे 

सरगम का निनाद छिड़ा हो.!

ये आस है जो मन में पल रही श्रद्धा का दीप सजल नैंनों से जलाया है.! 

ये वक्त हाँ ये वक्त हमारा ही सताया है रफ़्तार को साँसों में भरते खुद को भूले जा रहे थे.! 

यायावरों को ईश ने बंदी बनाया है 

थम गई है ज़िंदगी, जम गए सपने 

देखो प्रीत के शोलों की चिंगारी बुझ ना जाए.!

चलो बीते लम्हें दोहराएँ तुम आगाज़ दो उस गलियारे से में अंजाम देती हूँ इस खिड़की की क्षितिज पर बैठी प्रीत को परवाज़ देते.! 

मन के दृग में दबे कोलाहल से दूर इस जमे हुए लम्हों को जगाएं ज़रा

अनलमय अलसाए अहसासों में साँसे भरकर थमे हुए यादगार लम्हों में नई शिखा जगा लें।।



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