"फिर भी मैं पराई हूँ"
"फिर भी मैं पराई हूँ"
माँ का आँचल, पिता का प्यार,
भाई बहन मैं छोड़ के आई।
कितने अरमानों को लेकर,
पिया घर मैं ब्याह कर आई।
मन हर्षित, इक नई उमंग,
जीवन की ख़ुशियाँ सजाने आई।
जीवन साथी संग नई तरंगें,
ख़्वाबों की होगी नई अँगड़ाई।
तन मन से मैं अर्पित रहती,
मायका मोह मैं तज आई,
सास, ससुर, पति, बच्चों की ख़ुशी,
फिर भी मैं हूँ कितनी पराई।
पिता, पति व बेटे के नाम से ही,
जीवन भर मैं जानी जाऊँ।
अंतिम सांसों तक रहूँ समर्पित,
फिर भी मैं पराई कहलाऊँ।
माँ, बहन, बेटी, बहु, बुआ,
दादी नानी न कितने मेरे रूप।
हर रूप में मैं ख़ुशियाँ ही चाहूँ,
सावित्री, दुर्गा, सीता का हूँ स्वरूप।
इंदिरा,सुचेता, कल्पना, लता,
साइना, सिंधू बन उड़ान भरती हूँ।
घर, समाज, राष्ट्र की सेवा में जीवन,
फिर भी मैं पराई कहलाती हूँ।
