फिर भी अपना बोझ उठाए
फिर भी अपना बोझ उठाए
है उनकी शक्ति हीन जर्जर काया,
फिर भी अपना बोझ उठाए।
घर गृहस्थ की जिम्मेदारी,
अब भी रहा निभाए।।
जीवन कैसा यह गरीब का,
धन वाले क्या जाने।
मजबूरी का लाभ उठाकर,
देते उनको ढेरों ताने।।
सब कुछ सहते हैं बेचारे,
सुनते सदा शीश झुकाए।
शक्ति हीन है जर्जर काया,
फिर भी बोझ उठाए।।
दिनभर करते मजदूरी तब,
मिल पाता है खाना।
ऐसी लाचारी में उनको,
पड़ता समय बिताना।।
कब तक कर्म पड़ेगा करना,
यह भी समझ न आए।
शक्ति हीन है जर्जर काया,
फिर भी अपना बोझ उठाए।।
घर में बीबी बच्चे बैठे,
इनकी राह निहारे।
हैं अभाव का जीवन जीते,
व्यथित हृदय से सारे।।
सहते सारे कष्ट स्वयं हैं,
नीर नयन छलकाए।
शक्ति हीन है जर्जर काया,
फिर भी अपना बोझ उठाए।।
है कलंक यह मानवता पर,
इसका रोग मिटाना।
वृद्धों को सम्मान मिले बस,
उनको गले लगाना।।
उनको जीवन में,
सब खुशियां मिल जाए।
शक्ति हीन है जर्जर काया,
फिर भी अपना बोझ उठाए।।
