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Alka Nigam

Romance

4  

Alka Nigam

Romance

पगडंडी

पगडंडी

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ये जो तुम्हारे हृदय से 

मेरे हृदय तक पगडंडी जाती है न

बस तुम उसे ही देखना।

रास्ते में मिलेंगे बहुत से रंगबिरंगे गुलाब।

सम्मोहित हो उनके रंगों से

मतिमन्द से किसी भ्रमर से

उनके कांटों में मत उलझना,

घायल हो जाओगे।

मैं चाँदनी को अपनी पंखुड़ियों में लपेटे,

अपने लौंग बराबर अस्तित्व की महक से

अंधेरी रात को महकाते,

तुम्हारी प्रतीक्षा करूंगी।

माना कि रंग नहीं हैं मेरे वजूद में

पर एक बार जो भीगे तुम मेरी महक में

तो जा ना पाओगे।

हाँ....रातरानी हूँ मैं

तुम देखना....

संग मेरे तुम भी महक जाओगे।

भले ही मैं अपूर्ण सी गोपिका बन रह जाऊँ

पर....

तुम पूर्णपुरुष से मधुकर बन जाओगे।



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