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Aishani Aishani

Tragedy

4  

Aishani Aishani

Tragedy

पैसों का वृक्ष..!

पैसों का वृक्ष..!

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उग आया था एक विशालकाय नोटो का वृक्ष

कल ही तो लगाया था उस वृक्ष को

हाँ..!

कल मैंने बोया था एक सिक्के का नन्हा सा बीज उम्मीद का जल

महत्वाकांक्षा की खाद

और लोभ का संरक्षण देती थी उसे

आज वही पैसों का वृक्ष बड़ा विशाल हो गया

रिश्तों सगे संबंधियों के फूल पत्तों से लदा हुआ है

हर कोई जब चाहता है हिला हिला कर तोड़ ले जाता है

पैसो के पेड़ से मनचाहा धनराशि तोड़ ले जाता है

अब तो उसमें दरारें भी आने लगी है..!

हर सुख खो दिया नोटों के वृक्ष के वास्ते

और केवल ताने सुने तनाव सहेजा है

रिश्तेदार आते हैं नोटों की गड्डी तोड़ने

और..

दो- चार खरी खोटी सुनाकर चल देते हैं

ना सुख है ना ही चैन

अब तो बस हर वक़्त यही सोचती हूँ

क्यों यह वृक्ष रोपा असमय चैन के आंगन में

मिठास की जगह बस जहर ही मिला...!

उफ्फ्फ.. !


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