पैसा
पैसा
पैसों की कश्ती में सवार है आज हर इंसान,
पैसों के पीछे शायद भूल रहा है अपनी पहेचान।
वैसे तो कहते है पैसा कुछ भी नहीं,
सच तो यह है कि बगैर पैसों के आज कोई रिश्ता ही नहीं।
बाजार में आज पैसों के लिए रिश्ते बिक रहे हैं,
पहले दाना, फिर पानी, और आज
सांसों के लिए लोग नोट गिनवा रहे हैं।
कल तक बीज का दाम चुका रहे थे आज पेड़ बिकने लगे,
पैसा इतना बड़ा हो गया कि अपने पराए से लगने लगे।
माना की पैसा ज़रूरी है,
पर लोगो ने बनाया अपनी मजबूरी है।
पैसों की कश्ती में सवार है आज हर इंसान,
पैसों के पीछे शायद भूल रहा है अपनी पहचान।
