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Kiran Bala

Tragedy

5.0  

Kiran Bala

Tragedy

पैगाम

पैगाम

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उस दिन रोजाना की तरह 

टहलते हुए अचानक

हवा के झोंके के साथ 

न जाने कहाँ से

कागज का एक जहाज़

चला आया और

बड़े हौले से

मुझसे आ टकराया


जैसे ही उसे फेंकना चाहा

उस पर लिखा हुआ कुछ पाया


"एक पैगाम, तारों के नाम"


सुनो तारों, दीदी कहती हैं

तुम्हारी नगरी में, मेरी माँ रहती है

 उस तक है ,सन्देश पहुँचाना

मुझसे मिलने, जरूर तुम आना


इन शब्दों में इतनी, वेदना भरी थी

पढ़ कर मैं भी, रो पड़ी थी


नहीं जानती, कहाँ से आया

किसने था लिखा? 

पर जो कोई भी था,

था मन का सच्चा 


आज इतने बरसों बाद भी

उस कागज के टुकड़े को

जब भी देखती हूँ,

तो खुद पर ही हँसती हूँ 


इसे ,क्यों नहीं फेंक पाई

शायद, कागज नहीं

दिल था उसका, जिसे मैं 

तोड़ नहीं पाई


        


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