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राही अंजाना

Classics

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राही अंजाना

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पापा जी

पापा जी

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पकड़ कर ऊँगली जो समन्दर पार कराता है,

बहके गर जो कश्ती तो साहिल यार दिलाता है।


भुलाकर शरारत जो मुझे अपने सर पर उठाता है,

मैं जो रूठूँ तो मुझे वो हर बार मनाता है।


ख़ुशियों की बारिश हो या गमों की धूप,

बस एक वही मेरे सिर पर छाया बनाता है।


यूँ तो रिश्ते बहुत हैं जो साथ रहते हैं मेरे, 

पर पापा रूपी पर्वत ही मेरा हौसला बंधाता है।


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