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Umesh Shukla

Tragedy

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Umesh Shukla

Tragedy

पानी कम हो रहा....

पानी कम हो रहा....

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पानी कम हो रहा अब चारों ही ओर

नजरों से भी गुम हुआ संकट घनघोर

जन जन इसकी कमी नित करता है महसूस

पर इसकी रक्षा कौन करेे बनकर फानूस

धन सुमेरु खड़ा करने में जुटे नेता, कारकून

उनको दिखता ही नहीं पानी के लिए बहता खून

नदियों, पोखरों का मिट रहा रोज ब रोज अस्तित्व

फिर भी अफसरों को याद दिलाता नहीं कोई दायित्व

तंत्र के हरेक अंग में लग गई है भ्रष्टाचार की जंग

जो दिन रात निगल रही है आम आदमी की उमंग

शायद परवर दिगार भेजेंगे फिर से कोई अपना दूत

जो सबकी नकेल कस करेगा करनी को दुरुस्त

इस उम्मीद में ही खोए हैं भारत देश के सभी लोग

मायूसी की दशा में वो क रनहीं रहे हैं कोई नया प्रयोग।



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