ARVIND KUMAR SINGH

Tragedy

4.8  

ARVIND KUMAR SINGH

Tragedy

पाखंड

पाखंड

1 min
82


पाखंड बढा है देश मे इतना

चिंता फिक्र सी होती है

नालियों में दूध है बहता

जहां जनता भूखी सोती है


धर्म के ठेकेदारों ने कितना

उत्पात मचाकर रखा है

बांटते रहें लोगों मे हमेशा

जो जहर बचाकर रखा है


सरोकार नहीं धर्म से कोई

भीतर तक दिल के काले हैं

व्यापार इनका फलफूल रहा

जहां पेट भरन के लाले हैं


भविष्यफल है कहीं बताते

कहीं धर्म की ठेकेदारी है

जनता चंगुल से बचेगी कैसे

फंसी जो इस महामारी है


जात पात और भेदभाव

पाखंडी में अवगुण सारे हैं

भीड़ भडक्के समझें नहीं

इनको समझा कर हारे हैं


पढ़े लिखे लोगों में भी तो

आडम्बर फलफूल रहा

अंधे होकर मानते ये भी

पाखंडियों का ही कहा


पाखंड की खेती जोरों पर

दिन दूनी बढ रही पैदावार

काले कारनामे काले धंधे

फिर भी गले में इनके हार!


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy