पाखंड
पाखंड
![](https://cdn.storymirror.com/static/1pximage.jpeg)
![](https://cdn.storymirror.com/static/1pximage.jpeg)
पाखंड बढा है देश मे इतना
चिंता फिक्र सी होती है
नालियों में दूध है बहता
जहां जनता भूखी सोती है
धर्म के ठेकेदारों ने कितना
उत्पात मचाकर रखा है
बांटते रहें लोगों मे हमेशा
जो जहर बचाकर रखा है
सरोकार नहीं धर्म से कोई
भीतर तक दिल के काले हैं
व्यापार इनका फलफूल रहा
जहां पेट भरन के लाले हैं
भविष्यफल है कहीं बताते
कहीं धर्म की ठेकेदारी है
जनता चंगुल से बचेगी कैसे
फंसी जो इस महामारी है
जात पात और भेदभाव
पाखंडी में अवगुण सारे हैं
भीड़ भडक्के समझें नहीं
इनको समझा कर हारे हैं
पढ़े लिखे लोगों में भी तो
आडम्बर फलफूल रहा
अंधे होकर मानते ये भी
पाखंडियों का ही कहा
पाखंड की खेती जोरों पर
दिन दूनी बढ रही पैदावार
काले कारनामे काले धंधे
फिर भी गले में इनके हार!