पागल मन
पागल मन
क्यों हृदय में रुदन अभी है बाकी
प्रतीक्षा में कटी सुबह शाम रात्रि
नव भोर का प्रहर फिर जगा रहा आशा
आंखों से अभी भी बहती अश्रुधारा
द्वार पर टकटकी लगाए नयन ,
हर आहट पर बढ़ जाती धड़कन
कोई नहीं आने वाला समझ नहीं पाता
ये मेरा पागल मन।
क्यों हृदय में रुदन अभी है बाकी
प्रतीक्षा में कटी सुबह शाम रात्रि
नव भोर का प्रहर फिर जगा रहा आशा
आंखों से अभी भी बहती अश्रुधारा
द्वार पर टकटकी लगाए नयन ,
हर आहट पर बढ़ जाती धड़कन
कोई नहीं आने वाला समझ नहीं पाता
ये मेरा पागल मन।