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Birendra Nishad शिवम विद्रोही

Tragedy

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Birendra Nishad शिवम विद्रोही

Tragedy

न्याय की उम्मीद

न्याय की उम्मीद

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आँख के बदले आँख

सर के बदले सर

सीखा हमने ग्रंथों से

छाती हो गयी थी चौड़ी

जब देखा भीम पी रहा था खून

महाभारत में दुःशासन का।


दिमाग़ हमारा चर रहा था घास,

हम पीट रहें थे तालियाँ

जब हीरो विलेन से प्रतिशोध के लिए

इस भारत में पी रहा था खून शासन का।


कहने को तो हम लोकतंत्र के सच्चे नागरिक हैं

पर विश्वास कितना करते हैं संस्थाओं में,

पुलिस हमारे लिए दलाली का पर्याय है,

राजनीतिक पार्टियां हैं रिश्वत का अड्डा,

कोर्ट से न्याय की उम्मीद नहीं ,

संसद है मसखरी का अड्डा।


यहाँ तक कि अपने ही वोट से जिताये गए संसद विधायक की शक्ल याद नहीं,

दे आये थे वोट, एक जरुरी काम समझ कर,

वरना देखा कब था किसी का मेनिफेस्टो,

कौन क्या करेगा हमारे लिए, देश के लिए

या खुद के लिए?

फुर्सत ही नहीं कुछ सोचने की समझने की

तो अब क्यों, सुशासन की दुहाई

कानून का रोना, न्याय की उम्मीद।



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