नफ़रत
नफ़रत
न कर नफ़रत इतनी मुझ को,
मैंने कोई गुना किया नहीं।
इश्क करता हूँ दिल से तुझ को,
इसको क्यों तू सोचती नहीं?
हर पल तेरे साथ रहकर मैंने,
वफ़ादारी कभी तोड़ी नहीं।
तेरे मिलन की मधुर पलो को,
आज भी मैं भूल सकता नहीं।
तुझे मालूम है ये हकीकत भी,
तेरे बिना कोई मेरा नहीं।
भले ही तू मुझ को छोड़ दे पर,
मैं तेरा साथ छोडूंगा नहीं।
समझ ले तू मेरे इश्क को,
इश्क से पवित्र को चीज़ नहीं।
इश्क खुदा की देन है सनम,
उसका आदर क्यों करती नहीं?
छोड़ दे नफ़रत, छोड़ दे ज़िद को,
मेरे दिल को क्यों समझती नहीं?
मैं हूँ प्यार का सागर "मुरली"
उस में क्यों तू बहती नहीं?

