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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

नफरत दौर

नफरत दौर

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आजकल चल रहा बहुत ही नफरतों का दौर है।

सत्य बात करनेवाले को देखे, सब ही गौर-गौर है।।

इस रात्रि के आगे, रो रही आजकल, यह भोर है।

सूरज छिपा हुआ, आजकल बादलों की ओर है।।

नफरतों में खत्म हो रहा, भाईचारे का यह दौर है।

मोहब्बत हार रही, जीत रही नफ़रतें हर ठौर है।।

आजकल टूट रहे है, रिश्ते, जैसे हो कोई डोर है।

आजकल हर रिश्ते में प्रवेश हुआ, स्वार्थ चोर है।।

खिल रहे है, शूल और मुरझा रहे फूल हर ओर है।

आजकल चल रहा, बहुत ही नफरतों का दौर है।।

लोग स्वार्थ में अंधे हो अपना रहे, निम्नतम तौर है।

उजाले ओर कम, तम ओर लगा रहे, लोग दौड़ है।।

चाहे ज़माने में नफ़रतें बारिशें, कितनी घनघोर है।

टिकता न उसका, मोहब्बत छाते के आगे जोर है।।

खत्म हो जायेगा, एक दिन नफरतों का यह दौर है।

जिस दिन चलेगा इंसानियत, मोहब्बत का दौर है।।

तब खिलेंगे अमन के फूल दुनिया मे हर ओर है।

जब हम हिंसा छोड़, अपनाएंगे अहिंसा नौर है।।

तब अमावस्या में भी आ जायेगा, चंद्रमा कौर है।

जिस दिन, भीतर होगी सत्य की रोशन भोर है।।



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