नकली है शायद !
नकली है शायद !
सबके देह की गंध अलग–अलग है
संजु की , मंजु की, रेणु की , रानी की,
गंध तो गंध है!
कभी इस गंध में, कभी उस गंध में
खो जाता हूँ, डूब जाता हूँ
ध्यानमग्न –ध्यान में सहायक है गंध ।
तुम्हारी अनुपस्थिति में भी,
तुम्हारे वस्त्रों से ही
तुम्हारी गंध का अहसास भी ।
उस रात परेशान था मैं,
जब तुम्हारा ड्राईवर तुम्हें छोड़ने आया था ।
उसके मोजे की गंध,
गंध विशिष्ट होती है,
सबकी अलग-अलग ।
नैसर्गिक है गंध क्या ?
कृत्रिम भी है गंध
धनिया-पुदीना के देह की
गंध बची नहीं है,
सिंहनी, हिरनी, हथिनी, अश्विनी में,
गंध मची हो शायद !
कविता गंधहीन हो गई
नकली गंध डाला है शायद।
क्या गंध मचा रखा है कवियों ने
लेखकों ने ---
नायक हो या खलनायक
आने से जाने तक
पता ही नहीं चलता
नकली है शायद ।
संवाद, कथानक, गीत सबकुछ ॥
नकली है शायद ।