नज़्म
नज़्म
तेरी मौन मुस्कान की मार को क्या समझे
करे वो दिल पर ठंड़ा वार तो क्या समझे
सरका जो चिलमन आहिस्ता जलवों से
उठा इश्क का तूफ़ान दिल में क्या समझे
सुर्ख आँखों से बहते चाहत के आबशार
देखकर मुझे जमकर बरसे क्या समझे
नशीली हाला सी लब की नर्मी तड़पाए
पीने को मचल जाए अरमाँ क्या समझे
तौबा साज़ ए हुश्न के झिलमिलाते नखरे
छूते जिनको दिल नग्में छेड़े क्या समझे
हिना के रंग सा ख़ुमार लिए चौखट खड़ी
ज़र्द से मन पर छाई हरियाली क्या समझे
इबादत में पलकों के भीतर रुख़सार तेरा
तू सचमुच का मुझे खुदा लगे क्या समझे
मेरे दिल ने तुझे चुना है हर चेहरा देखकर
मन को कोई ओर ना तो भाए क्या समझे
दूजा कहाँ दुनिया में मेरे कातिल जैसा
ज़मीं पर दूसरा ताज लगे तो क्या समझे।