निशां रह जायेंगे
निशां रह जायेंगे
जिंदगी कहीं
वीरान न होने लगे
दूरियां कहीं
ज्यादा बढ़ने न लगे।
छिन न जाए कहीं
लबों की मुस्कुराहट
अकेलेपन की
सुन लेना जरा आहट।
दरार का अंदेशा होते ही
मरम्मत कर लेना
दरारों को
बेवजह बढ़ने मत देना
खंडहर-सी जिंदगी में।
भटकती ये आत्मा
कैसे पाएगी चैन
खुशियों का होगा खात्मा
उजड़ जाएगा चमन।
निशां रह जाएंगे
पछताने से फिर
कहां कुछ पाओगे
आंधियां तुम्हारे कदमों के
निशां मिटाएंगी।
इतिहास बन कर भी
नजर नहीं आओगे।