अब क्या समझेगा वह मेरा विचार
अब क्या समझेगा वह मेरा विचार
आखिर कुछ तो समझ लो,
वही झुंझुनू लिये हो अबतक।
और बताओ देश के बुड़बक,
जाति धर्म में बंटे हो कबतक।
मुझे गाली दोगे मानता हूं,
तुम्हारी उल्फतें पहचानता हूं,
वही रंगत जाति धर्म शान,
पेट से भूखे हो जानता हूं।
जतन की बात पर तेरा पतन शान है,
जाति धर्म में राष्ट्रवाद वतन के नाम है।
सिर्फ सत्ता के लिये मुकाम है,
मेंढकों को कहीं होता जुकाम है ।
मत पूछ बार बार समझाकर,
पत्थर मारेगा मुझे उठाकर।
अफरा दिया गया है बुढ़बक,
चुनाव में पौआ धोती रोटी से,
अब क्या समझेगा वह मेरा विचार,
जब पीकर बुढ़बक ने बना दी सरकार ।