STORYMIRROR

प्रीति शर्मा "पूर्णिमा

Abstract

4  

प्रीति शर्मा "पूर्णिमा

Abstract

"पतंग-डोर "

"पतंग-डोर "

1 min
266

हवाओं में बहे सतरंगी लहराती।

हाथों के इशारों पर नाचती गाती।

ऊंचे आसमां में पंछी से होड़कर

ये पतंग मन को भी उड़ा लिये जाती।।

मन पतंग को अपनी संभालकर रखिये।

है बड़ा चंचल डोर इसकी थाम रखिये।

निकल गया हाथ से न हाथ आयेगा फिर

चाहे फिर खींच लीजिये या ढील रखिए।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract