"पतंग-डोर "
"पतंग-डोर "
हवाओं में बहे सतरंगी लहराती।
हाथों के इशारों पर नाचती गाती।
ऊंचे आसमां में पंछी से होड़कर
ये पतंग मन को भी उड़ा लिये जाती।।
मन पतंग को अपनी संभालकर रखिये।
है बड़ा चंचल डोर इसकी थाम रखिये।
निकल गया हाथ से न हाथ आयेगा फिर
चाहे फिर खींच लीजिये या ढील रखिए।
