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Mehrin Ahmad

Abstract

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Mehrin Ahmad

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उड़ान

उड़ान

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एक सवाल है,

अब कब नन्ही सी चिड़िया की रूह,

आसमान में उड़ान से पहले कैद ना होगी।


अब कब किसी शिकारी की तीर से गुज़र,

लहू लुहान ना होगी।


अब कब पिंजरे से आज़ाद होकर,

झूम झूम के नाचेंगी।


अब कब पर्वत के शिखर पर बैठ कर,

आज़ादी के मीठे गीत गाएगी।


अब कब गम के बादल हट जाएंगे,

सूरज की रोशनी से पेशानी चमकेगी।


अब कब चांदनी रात में,

बेशुमार ख्वाब बूनेगी।


अब कब खुले आसमान में,

बेख़ौफ़ सुनहरे पंख लहराएगी।


अब कब इन ख्वाहिशों की

उड़ान मुकम्मल होगी।


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