एक खत खुद को 65 साल की उम्र में
एक खत खुद को 65 साल की उम्र में
अब तुम पैसठ साल की हो,
ज़िन्दगी की आखरी मोड़ पे हो,
कितनी खुशनसीब हो की अब तक हयात में हो।
हर ख्वाहिश को पूरी करो जो अधूरी रह गई हो,
तुमने सबका ख्याल रखा,
अब अपनी सेहत का ख्याल रखना,
अगर दवाओं के सहारे नहीं जीना।
अपने हमसफ़र को ऐसे देखो,
जैसे तुमने पहली बार आंखों में
चमक लिए उसे देखा था।
हर रोज़ अपनी चाहत का इजहार करना,
जैसे पहली मुलाकात पर किया था।
चेहरे पे झुर्रियों और सफ़ेद बालों के साथ,
आईने में इस तरह देखना जैसे तुमने
सोलह साल में चेहरे पे मुस्कान लिए देखा था।
अफसोस में वक़्त जाया ना करो,
जीयो, हंसो और खुश रहो,
यही कुल अहसास - ए - ज़िन्दगी है।