कमरा
कमरा
दिल के कमरे में दस्तक दी, जो ईंटों के सहारे खड़ा था।
दीवारों को उल्फत के सौ रंगों से रंगा।
ख्वाबों से सजी, रेशमी चादर बिछाई ।
अरमानों से लिपटा, मखमली कालीन बिछाया।
एहसास भरे धागों में मोती पिरोह,एक पर्दा लगाया।
खुशियों से भरी अलमारी को रखा।
सामने दीवार पे सुकून की घड़ियों वाली,घड़ी को रखा।
मेरी पहचान को निखारने वाला आइना लगाया।
सिरहाने की मेज़ पर,बुलंद स्याही कि कलम सजाई।
फिर दरवाज़े पे ज़ंजीर डाल,वापिस ना लौटा।
अब दीवारों के रंग फीके पड़ गए, चादर बेरंग हो गई ,
कालीन मैली पड़ गई, धागे टूट, मोती बिखर गए,
अलमारी में दीमक लग गए, घड़ी की सुई,थम सी गई,
आइने पर दरार आ गई, स्याही सूख गए,
क्या तुम्हें थोड़ी सी भी ख़बर, अफसोस तुम ठहरे बेख़बर।
