नज़्म
नज़्म
सुबह का वक़्त है पौ फटने का,
या झुटपटा शाम का है मालूम नहीं,
सोचती हूं कोई ऐसी नज़्म कागज़ पे लिखूं,
जो अगर उड़ते उड़ते बुझे सूरज में गिरे,
तो सूरज फिर से जलने लगे।
सुबह का वक़्त है पौ फटने का,
या झुटपटा शाम का है मालूम नहीं,
सोचती हूं कोई ऐसी नज़्म कागज़ पे लिखूं,
जो अगर उड़ते उड़ते बुझे सूरज में गिरे,
तो सूरज फिर से जलने लगे।