गर कभी
गर कभी
इन सर्द हवाओं में, गर कभी मेरी याद आए,
तो धड़कन मेरी सुन लेना।
इस घने कोहरे में,भूला बिसरा कुछ दिख जाए,
तो उन्हें ना तुम छटने देना ।
इन बरसती बूंदों में,अगर अदा मेरी कोई याद आए ,
तो दो बूंद चेहरे पर पड़ने देना।
इस घनघोर घटा में,अक्स मेरा कहीं दिख जाए,
तो चुपके से मुझे पुकार लेना ।
इस कड़कते जाड़े में, गर कँपकँपाहट मेरी दिख जाए,
तो गले मुझे लगा लेना।
कभी खिले हुए फूलों में,गर मुस्कान मेरी तुम्हें दिख जाए,
तो धीरे से तुम भी मुस्कुरा देना ।
इन सरसराती हवाओं में,गर आवाज मेरी कभी सुन जाए,
तो बाँहें खोल बतला लेना ।
इस बिरहा की पीड़ा में, गर आँसू मेरे दिख जाएँ,
तो पलकों में मुझे बसा लेना।
जिंदगी के सफर की किसी डगर पर, गर छाया मेरी कभी दिख जाए ,
तो हाथ बस उसका थाम लेना ।
जो अपनी धड़कन और सांसो में,गर मेरी खुशबू आ जाए,
तो दिल में मुझे छुपा लेना।
गर कभी किसी मंजर में, कभी कुछ छूकर चला जाए,
बस महसूस मुझे तुम कर लेना।
जो यादें मेरी तुम्हारे जीवन को, विघ्न बन सताने लगे,
तो बेझिझक इन यादों को जीवन से अपने मिटा देना।