औषध संजीवनी देखो प्रजा
औषध संजीवनी देखो प्रजा
प्रजा! तुमने देखा न शेर,
देखो तो कैसा होता है।
जमीं से लेकर आसमां तक,
तुम देखते नहीं बात क्या है।
सकुचाते क्यों बोलो प्रजा!
आंखों में भेद भला कब तक,
औषध संजीवनी देखो प्रजा।
उदर से पहले स्नेह का स्वाद,
परा भक्ति में कब किसकी मर्यादा।
यह सुन समझ ले धरा के वासी,
जन्म से कौन देश भूप अविनाशी।
जल समान आगे बढ़ो प्रजा!
स्वयं बन जायेगी पाषाण में रास्ता।
भूप शैय्या नीची है,
प्रजा का दर्जा ऊंचा है।
तनिक देर पश्चात नहीं,
अगम धाम पर गमन नहीं,
जनता का भाव ऊंचा है।
संस्थापन का अन्त करो,
आवाहन को आगाज़ करो।
वर्षों से नहीं कर पाये जो सम्राट,
अब क्या करेगा वह साधुवाद।
अब न समाज की भ्रूण हत्या होने दो,
या अब जनवाद को मन की करने दो।