गज़ल
गज़ल
दिल पे दस्तक अगर नहीं होती
मुझको तेरी खबर नहीं होती
शिद्दत-ए-वस्ल की इबादत में
शाख यूँ ही शजर नहीं होती
चूसकर खून मुफलिसी का मगर
कोई बस्ती शहर नहीं होती
किस तरह से निभाएंगे रिश्ते
उसको अपनी फिकर नहीं होती
रोज़ कहते हैं कि मिट जाएंगे
खुदकुशी ही मगर नहीं होती
कब से 'अविनाश' झुके बैठे हैं
बन्दगी की पहर नहीं होती।