कैसा अजीब है इंसान
कैसा अजीब है इंसान
कैसा अजीब है इंसान
पैसा ही बना भगवान,
शांति के नाम पर करता
हरदम नए नए बवाल,
रोज जाता सत्संग में
पाने को मन की शांति,
घर में आते ही वह खुद
फैलाता है अशांति,
दूसरों को देता है हरदम
नई नई नसीहतें,
खुद के समय खुद ही
भूल जाता है सारे नियम,
दूसरों पर लगाता रहता
कोई न कोई इल्जाम,
खुद को पाक साफ
साबित करता रहता है,
ईश्वर से डरता है लेकिन
ईश्वर से ही करता दगा,
हर गलत काम जरूर करेगा
चाहे पा ले कितनी भी सजा।।