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Yogesh Kanava

Abstract Inspirational

4.5  

Yogesh Kanava

Abstract Inspirational

ज़िन्दगी

ज़िन्दगी

1 min
227


ज़िन्दगी 

नदी के दो छोर सी 

रोटी के एक कोर सी 

कठपुतली की डोर सी। 


ज़िन्दगी 

समंदर के साहिल सी 

दफ्तर के फाइल सी 

अनसुलझे मसाइल सी। 


ज़िन्दगी 

आंधी की रेत सी 

विधवा के खेत सी 

बाँझ के हेत सी। 


ज़िन्दगी 

भोर का गीत सी 

वियोगी मीत सी 

हारी हुयी जीत सी। 


ज़िन्दगी 

तुलसी की माला सी 

रामनामी दुशाला सी 

गांव की गउशाला सी 


ज़िन्दगी 

मन की अभिलाषा सी 

सब पाने की आशा सी 

चौराहे पर तमाशा सी। 


ज़िन्दगी 

चूनर धानी सी 

बरसाती पानी सी 

नानी की कहनी सी। 


ज़िन्दगी 

मोहन से मीत सी 

राधा के प्रीत सी 

मीरा के गीत सी। 


ज़िन्दगी 

बस्ती सूनी सी 

जोगी की धुनी सी 

कपास की पूनी सी। 


ज़िन्दगी 

सुलगती आँच सी 

दरकते काँच सी 

अनदेखे साँच सी। 


ज़िन्दगी 

सावनी फुहार सी 

कजरी मल्हार सी 

बसंत बहार सी। 


ज़िन्दगी 

दोपहर तपती सी 

क़र्ज़ में खपती सी 

गजों में नपती सी। 


ज़िन्दगी 

मचलते अरमान सी 

अपने घर में मेहमान सी 

देवी के वरदान सी। 


ज़िन्दगी 

मंच पर अभिनीत सी 

समाज की रीत सी 

मनमौजी मीत सी। 


ज़िन्दगी 

धर्म के उत्कर्ष सी 

जटायु के संघर्ष सी 

विदुर के विमर्श सी। 



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