खलनायक
खलनायक
थे पैर हमारे ठिठक गए
हम आजादी से भटक गए।
तुम ना उनसे क्या उम्मीद लगाए बैठे हो
जिसके शतरंज के खेल में तुम सिर्फ एक प्यादे हो।
बहुत उत्तीर्ण हुए हो तुम
पर अफसोस तुम भी नौकर बन जाओगे
फिर उन्हीं के गीत गाओगे।
मैं तो यूं ही लिखता रहूंगा
कुछ समय तक तुम ये याद रखोगे ?
नहीं साहब ये भी भुला दिया जाएगा।
वह खलनायक उस कुर्सी पर भी आ जायेगा
उस लकड़ी की कुर्सी पर फिर दीमक लगता जायेगा।
समय के पहिए के साथ वो कुर्सी भी ढह जायेगी
फिर सिर्फ वो खलनायक होगा
औ फिर आजादी पर सवाल उठाए जायेंगे।
पर क्या किया जा सकता है
हम तो कह देंगे
थे पैर हमारे ठिठक गए
हम आजादी से यूं भटक गए।