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Rehan Arman

Abstract

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Rehan Arman

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मोहब्बत

मोहब्बत

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वह मोहब्बत ही क्या

जिसमें दर्द न हो

वह दर्द ही क्या

जो अपनों का न हो

वह अपने ही क्या

जो समझ न सकें

और जो समझ न सकें

वह गैर हैं

और जो गैर हैं

उनके दर्द से

कोई फर्क ही

नहीं पड़ता

और जब कोई 

फर्क ही नहीं पड़ता

तो टेंशन फिर

किस बात का

इसलिए लोगों को

भूल जाओ अब

भक्ति करो ईश्वर की

सब सुनाओ उसी को

वही है जो

सुन सकता है

और दुख तेरा

मिटा सकता है

वरना ये मानव

केवल पीड़ा देते हैं


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