बचपन
बचपन
आज भी तुम पर सब अरपन है।
मिटता जहन से कब बचपन है।
गिल्ली उछालकर उड़ना हवा में
आज भी तो वो मन का दरपन है।
सींकों के घरोंदे, बालू के ठेके।
आज भी वो हवा की महकन है।
कुश्ती की फर, वो ऊँची लम्बी कूद
बचपन में लौट जायूँ ये तड़फन है।
'सुओम' कितना चाहता है तुमको
तुम्हारे लिए ही व्याकुल मेरा मन है।