कद्र यौवन की कर लें
कद्र यौवन की कर लें
गीत
कद्र यौवन की करलें
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बचपन गया जवानी आई पर ये है दिन चार ।
पतझर के मौसम में पगले आती नहीं बहार ।।
कद्र यौवन की करले
बावरे खुशियां वरले
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नई भोर में, नए गगन में नहीं उड़ानें भरले ।
मिली है ताकत संभव तू असंभव को भी कर लें ।
कब हो जाए शाम भोर का कर स्वागत सत्कार।
मुरझाए गुल कब कर पाते खुशबू का व्यापार ।।
कद्र यौवन ही करले ,
बावरे खुशियां वरले ।
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निकल गया जो वक्त ,लौट के आए नहीं दुबारा।
अभी जवां है ,उम्र ढले घिर आएगा अंधियारा ।।
अंधियारे का दर्द सभी को, कर देता लाचार ।
कब रोशन कर पाते बोलो ,मुझे दीप घरद्वार ।।
कद्र यौवन की करले,
बावरे खुशियां वरले ।।
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रोशन दीप आरती की थाली को सदा सजाते ।
बुझी हुई शम्मा पर कब परवाने जान लुटाते ।।
अभी वक्त अनुकूल है तेरा, खोल खुशी के द्वार।
अवसर मिलता नहीं दुबारा कर खुद को तैयार ।।
कद्र यौवन की करले,
बावरे खुशियां वरले ।।
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बिना गले फौलाद कहाँ मूरत कोई ढल पाती।
कच्ची मिट्टी बिना आग में तपे कहाँ इठलाती।।
काम किसी के आजा तू भी, है यौवन दिन चार।
गया जो यौवन नहीं मिलेगा करले सौ मनुहार ।।
कद्र यौवन ही करले,
बावरे खुशियां वरले ।।
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प्राणवान जिससे "अनंत" है ये फानी संसार ।
आज उसी यौवन धन का पाया तूने उपहार ।।
रीत जाये घट इससे पहले रोज मना त्योहार।
बांट जरूरत मंदों में तू शिफा पाएं बीमार ।।
कद्र यौवन की करले,
बावरे खुशियां वरले ।।
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अख्तर अली शाह "अनंत"नीमच
9893788338