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Mahavir Uttranchali

Abstract

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Mahavir Uttranchali

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दृढ़ता कभी आश्रित नहीं

दृढ़ता कभी आश्रित नहीं

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जीवन कभी मोहताज नहीं होता


मोहताज तो होता है

हीन विचार, निजी स्वार्थ और क्षीण आत्मविश्वास ।

क्योंकि यह मृगमरीचिका व्यक्ति को

उस वक्त तक सेहरा में भटकती है

जब तक कि

वह पूर्णरूपेण निष्प्राण नहीं हो जाता!


इसके विपरीत

जो दृढनिश्चयी, महत्वकांक्षी व स्वाभिमानी है

वह निरंतर

प्रगति की पायदान चढ़ता हुआ

कायम करता है वो बुलंद रुतबा कि —

यदि वो चाहे तो खुदा को भी छू ले ।


वह शख्स घोर निराशा

एवम दु: ख के क्षणों को ऐसे मिटा देता है


जैसे —

किरणों के स्फुटित होने पर

तम का सीना स्वयमेव चिर जाता है ।



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