ये खामोशी
ये खामोशी
एक अजीब सी खामोशी
पैर जमाती है समय के साथ
दर्द भी लबों तक आते शर्माता है
कुछ बिखरता है कुछ टूट जाता है।
किरचा-किरचा हुई कांच सी जिंदगी
चुभती बहुत बेवजह ये खामोशी
हंसने वाले तो तलाशते मौका
कुछ तो पत्थर हाथ में लेकर बैठे।
मिलते कहां इंसान ढूंढे -ढूंढे
अनेक सपनों की समाधि है ये
दम तोड़ती इच्छाओं का है आईना
समय के साथ बनाती है घर अपना।
भुला देती है जीवन कैसे जीना
टूट जाते हैं पंख रूक जाती उड़ान
बर्बादी लिखती है नई इक दास्तान
ये खामोशी पंजों में दबोचे जीवन।
सोखती जाती है जीवन के रस
तन्हाई और अकेलेपन बनते साथी
पसर जाती है भीतर-बाहर खामोशी
देती है आने वाले तूफानों का संदेशा
जिसका किसी को कहां होता अंदेशा।