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Rajni Sharma

Abstract

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Rajni Sharma

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ख्वाहिश

ख्वाहिश

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जिंदगी के पन्नों को

ख्वाहिशों ने लूटा है

जो मिल जाए तू हमसफर बनके

तो खुदा भी अपना छूटा है।


कहने को समृद्ध हूं मैं

पर फिर भी एक कसक है मन में 

कुछ अभी भी रूठा है

ले लो अपने जीवन संग में 

मत करो अठखेली अब 

सांसें बहुत जरूरी है।


समय का चक्र जो रुक जाएगा

तो जीवन नैया अधूरी है

माना कि गलती बहुत हुई

परिस्थितियों ने जकड़ा था।


मजबूर बेबस थी मैं

उस समय ना कोई अपना था

पतझड़ बाद बहार बनके

मौसम फिर से गाएगा।


खुशियां अपनी कहानी लिखने

वक्त बदल जाएगा।


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