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Mahavir Uttranchali

Abstract

5.0  

Mahavir Uttranchali

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कविता की नदिया

कविता की नदिया

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शब्द कहें तू न रुक भइया

कदम बढ़ाकर चल-चल-चल-चल

कविता की नदिया बहती है

करती जाए कल-कल-कल-कल

कविता की नदिया बहती है


काग़ज़ पर होती है खेती

हर भाषा के शब्दों की

उच्चारण हों शुद्ध यदि तो

शान बढ़े फिर अर्थों की

हिंदी-उर्दू के वृक्षों से

तोड़ रहे सब फल-फल-फल-फल

कविता की नदिया बहती है


अ आ इ ई के अक्षर हों

या फिर अलिफ़ बे पे ते

ए बी सी डी भी सीखेंगे

सब होनहार हैं बच्चे

उपलब्ध नेट पे आज

समस्याओं के हल-हल-हल-हल

कविता की नदिया बहती है


मीरो-ग़ालिब हों या फिर

हों तुलसी-सूर-कबीरा

प्रेम से उपजे हैं सारे

कहते संत “महावीरा”

बैर भूलकर आपसे में

जी लो सारे पल-पल-पल-पल

कविता की नदिया बहती है


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