नीम छांव
नीम छांव
कड़ी धूप थी जल गये पांव मेरे
कहां ढूंढते नीम के छांव घेरे।
मिला ही कहां हम जिसे आजमाते
सफर के अलावा नहीं ठांव मेरे।
चला मैं बहुत पर नहीं ढूंढ पाया
पलटते रहे हैं सभी दांव मेरे।
अकेले चला उम्र भर जब सफ़र में
बहुत याद आये मुझे गांव मेरे।
दिखा दो मुझे अब वही राह कोई
भरे प्रीत मन के पलक पांव मेरे।