साहित्यिक अभिरुचि कविताओं के सृजन की ओर ले जाती हैं। प्रकृति के प्रेम और राग रंगों की विविधता शब्दों में सहेज लेती हूं। मानवीय संवेदनाएं भी आधार हैं।
झर रहे अवसाद मन के पंखुड़ी बिखरी हवा में झर रहे अवसाद मन के पंखुड़ी बिखरी हवा में
दिखा दो मुझे अब वही राह कोई भरे प्रीत मन के पलक पांव मेरे। दिखा दो मुझे अब वही राह कोई भरे प्रीत मन के पलक पांव मेरे।
चढ़ाती हूं मद्धिम सोच की आंच पर द्वंद की चाय उबालती हूं कड़वे अहसास की पत्तियां! फिर घू... चढ़ाती हूं मद्धिम सोच की आंच पर द्वंद की चाय उबालती हूं कड़वे अहसास की ...
ढल गए हैं तप्त दिन झूलती पुरवाईयाँ भी तिरछी हो गई धूप किरणें भूलती अमराईयाँ भी ढल गए हैं तप्त दिन झूलती पुरवाईयाँ भी तिरछी हो गई धूप किरणें भूलती अमराईयाँ...
सावन सूखता है फिर कपाती सर्द सी सिहरन उगलते अग्नि बाणों से हुआ आहत ये कोमल मन व्यथाओं की... सावन सूखता है फिर कपाती सर्द सी सिहरन उगलते अग्नि बाणों से हुआ आहत ये क...
सुन रहे हो नील मेघ! द्रवित होगा मन कभी! पसीजेगी अंतरात्मा. तुम्हारी। सुन रहे हो नील मेघ! द्रवित होगा मन कभी! पसीजेगी अंतरात्मा. तुम्हार...