नील मेघ
नील मेघ
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समवेत स्वर का रुदन
और समेकित प्रार्थनाएं
सुन रहे हो नील मेघ!
द्रवित होगा मन
कभी!
पसीजेगी अंतरात्मा.
तुम्हारी।
जीव जलचर तरु व्यथित
पीत ज्वर की
वेदना से
ओढ़ लो अब
श्यामवर्णी बादलों के
खोलकर पट
बूंदें झिलमिल
तिलमिलाई पीठ पर
संगीत लिख दें
सहजता से धरा के
नाम बस प्रीत लिख दें।