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हमारी मातृभाषा

हमारी मातृभाषा

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हिन्दी है बिल्कुल हमारी माँ जैसी।

सबसे ज्यादा आसान और आरामदायक।

हमारी भावनाओं को शब्दो में पिरोती ,

हमारी पहली बोली यही है होती।

और जब भी हम दुख में होते 

हम इसी को याद करते बिल्कुल माँ के आंचल जैसे, 

अपने मन के भाव और व्यथा को जाहिर करने।

पर हम भी तो ढीठ ही बच्चे है,

जैसे जैसे हम बढ़ते जाते 

अपनी ही माँ से शर्माते।

उसको ही माँ कहने से घबराते,

सबसे पहली गलती तो यही कर जाते,

पर फिर भी हिन्दी हमारा साथ ना छोड़ती,

हमारे पीछे खड़ी हमारा हौसला बढ़ाती।

इस इंतज़ार में की एक दिन हम 

उसे फिर से गले लगायेंगे और 

अपनी गलती स्वीकारेंगे 

कि माँ के जैसे ही मातृभाषा भी 

सबसे सर्वोपरि है।

माना की English हमारी कर्म -भूमि की भाषा है,

पर हिन्दी भी तो हमारी जन्म भूमि की भाषा है।

दोनो की अपनी जगह और सम्मान हैं,

और दोनो की अपनी अलग अलग पहचान है।

इसलिए दोनो का सम्मान करें

और दोनो का बराबर उपयोग कर।



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