काश
काश
काश! मैं तुम्हारे फोन का नोटपैड होती
पढ़ पाती मैं फिर,
तुम्हारे मन के आधे अधूरे जज्बातों को
और अपने अन्तस में सम्भाल के रख लेती मैं
तुम्हारे हर एक अल्फ़ाज को।
कभी शाम ढले ,कभी अहले सुबह
तुम मुझसे ही तोह साझा करते
कुछ पुरानी यादें
कुछ नये सपने संजोते
कभी कुछ कहते कहते
रुक जाते तुम
और कभी लिखते लिखते
धीमे से मुझपर सर टिका लेते।
कभी मुस्कूराते हुए बताते
अपने पहले प्यार के बारे में
और कभी आंख भर आती
उसे याद करते करते
मैं चुप चाप सब सुनती
और तुम बस अपने ख्वाबों
में डूबे मुझे निहारा करते।
काश! मैं तुम्हारे फोन का नोटपैड होती