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Mahavir Uttranchali

Abstract

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Mahavir Uttranchali

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वीरवर

वीरवर

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धन्य हमारी मातृभूमि

धन्य हमारे वीरवर

लौट आये कालमुख से

शत्रू की छाती चीरकर।।


बढ़ चले विजयनाद करते

काल को परास्त कर।

रीढ़ शत्रू का तोड़ आये

वज्र मुश्त प्रहार कर।।


पीछे न हट सके वो पग

जब काल का प्रण किया।

रणबांकुरों ने ऐसे हँसके

मृत्यु का वरण किया।।


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