निर्भीक हूँ
निर्भीक हूँ
ढलती शाम सी बढ़ती उम्र...दिल अरुणोदय सा प्रकाशमान निश्छल,
अस्सी के दशक का वो सुनहरा पल...अवतरण दिवस मेरा प्रसन्न पूर्ण सकल,
जोशे- जुनून मैं बढ़ते कदम...दबाकर हृदय में भाव कोमल
दरख़्त सी अडिग मेरी खुद्दारी...लड़ती तूफानों से खड़ी अचल,
कठोर पाषाण सा स्वाभिमान मेरा…संघर्षशील दौर पर आत्मविश्वास सबल,
सागर सी विशाल ज़िम्मेदारियाँ अनेक...संभाले हुए मैं होकर प्रबल,
मकड़जाल सी उलझती उलझनें...मैं समझ बूझ से करती जाती सरल,
ओस की बूँद सी चमकती...हर कठिनाई को पार करती,
जीवन पथ पर हूँ अग्रसर...निर्भीक हूँ! ना समझना निर्बल...